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हुनर है तो कदर है।



हर इंसान कुदरत का एक अनमोल हीरा है. अग्नि पुराण के अनुसार " मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है", भगवान ने हर मानव को कोई न कोई हुनर ज़रूर दिया है, ज़रूरत है तो उसे पहचानने की, आज मैं आप सबको कुछ ऐसे ही इंसानो के बारे में जानकारी दूंगी जिनके पास कोई डिग्री नहीं थी, न ही किसी प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट का टैग , पर फिर भी लोगो ने उनकी काबिलियत को सलाम किया, पहला नाम इसमें " मुंबई " के डब्बावाला का आता है जिनके परचम ने " नेतृत्व " करने के गुणो ने सिर्फ हिन्दुस्तान को ही नहीं बल्कि विदेशो में भी लोगो को अपनी ओर आकर्षित किया है , मैनेजमेंट में सिक्ससिग्मा का टैग सिर्फ कुछ " बहु राष्ट्रीय " कंपनियों को ही मिलता है, यह हमारे देश के लिए गौरव की बात है, की यह सम्मान " डब्बा वाला" को भी मिला है, जिनके काम करने के तरीके , उनके अनुशासन और वक़्त की पाबन्दी ने ही उन्हें सफलता की इस मुकाम पर लाकर खड़ा किया. ऐसा ही एक और उदहारण है " इंदौर" के "जोशी दही बड़ा" वालो का  जिनका "दही बड़ा" बनाने का अंदाज़ बिलकुल अलग है, इतना स्वाद से भरा खाना जिसमे सिर्फ स्वाद ही नहीं बल्कि बनाने में भी एक नवीनता है, जयपुर की" रावत की कचोड़िया " भी लोगो को अपनी और आकर्षित करती है, आप सबने " हापुड़ के पापड़ " का नाम ज़रूर सुना होगा, इस देश में भुट्टा खाना सिर्फ एक आदमी का ही नहीं बल्कि आजकल तो मूवी में भी एक आकर्षण का केंद्र है, आप लोनावला से लेकर महाभलेश्वर तक जाइए आपको काफी संख्या में लोग अपना काम करते कुछ नया खिलते हुए दिखाई देंगे , हमारे लिए "लोकल आर्ट " का बहुत महत्व है राजस्थान के " बनी ठनी" इस आर्ट का सबसे उत्कृष्ट नमूना है,कश्मीर की पश्मीना शॉल आज भी हज़ारो के मन का केंद्र है, "बंधेज" का काम या फिर " चंदेरी साड़िया बनारस की साड़िया यह सब सिर्फ कला का ही नहीं बल्कि "रोजगार " का भी साधन है, आज हम हर किसी को " डॉक्टर" या " इंजीनियरिंग" की तैयारी करते हुए देखते है, क्यों कोई कला के छेत्र में कुछ अलग नहीं करना चाहता? जबकि यह काम तो सदियों से चला आ रहा है, देश में रोजगार से ज्यादा " नवीनता" की कमी है, आज देश मंगल तक तो पहुंच गया, पर ज़मीनी तौर पर हमने अपनी ताकत को खोया है, आज जहा इस देश में लोग पापड़, और आचार बड़े ही शौक से खाते है, वही इस ओर कोई धयान ही नहीं देता " स्माल स्केल " इंडस्ट्रीज यह एक ऐसा शब्द है जिसकी ताकत को हम नहीं पहचानते , अगर हम अपने देश की "लोकल आर्ट " का सही इस्तेमाल करे तो शायद रिसेशन कभी आ ही नहीं सकता, क्योकि हमारे पास एक बहुत बड़ा मार्केट है, जहां हम अपनी कला को दिखा सकते है, आप खुद ही सोचिये की लिजत पापड़ इसी देश की शान है, हमारे "एम दी एच "मसाले जिनका व्यापर "गल्फ " के देशो तक में होता है, यह सब किसी खानदान की या किसी जगह का ही तो हुनर है " जिसका परचम " आज दुनिया भर में लहरा रहा है, आप सबने " राजधानी" का नाम तो सुना ही होगा जिसे आज एक खानदानी परंपरा के नाम से जाना जाता है, इस काम की शुरआत भी तो किसी न किसी ने की ही होगी, मुझे अपने बचपन की एक दूकान आज भी याद है, " झाँसी में सिप्री " बाजार के " गोल गप्पे " रात तक उसके ठेले के पास खड़े होने की जगह तक नहीं होती थी, उसका पानी पिने लोग दूर दूर से आया करते थे, इसे कहते एक ऐसा हुनर जो हमसब में होता है, पर ज़रूरत उसे निखारने की, जैसे कोई बहुत अच्छा लिख्ता है तो कोई बहुत अच्छी पेंटिंग बनता है, छाया लिपि चित्रण करता है, पर शायद आज भी हमारे यहाँ " इन सब बातो " की कोई कदर नहीं है, ज़ोर इसी बात पर होता है की " सॉफ्ट वेयर इंजीनियर " बनो मेडिकल की पढाई करो, आई एस बनो , चाहे कुदरत ने उसे किसी और नमूने की लिए बनाया है, एक बात हमें नहीं भूलनी चाहिए की चाहे आज हो या फिर कल वक़्त किसी की लिए नहीं रुकता , अगर आप आज को कुछ नया नहीं दे सकते तो कल सुनेहरा कैसे होगा, "दुनिया की अजूबो" में चाहे "ताजमहल " हो या फिर" पिरॅमिडस" यह सब एक नवीनता का ही उदाहरण है, जिन पर हमारे पूर्वजो की पकड़ थी........... तेरे हुनर की कदर है, हर वक़्त में, समय को पहचान , अपनी आरज़ू को होने दे पूरा, कुछ सोच, कुछ कर नया , क्योकि तक़दीर है तुझ पर मेहरबान . देख अपने अंदर, क्योकि खुदा ने तराशा है हमें, सिर्फ और सिर्फ अपनी कला को पहचान............ मिलेग़ी सलामी क्योकि चलना नहीं है एक रस्ते पे, जब मंज़िल है अलग तो रस्ता भी खुद ही बना, अपनी कला को पहचान तो ज़रा , अपनी कला को पहचान..........
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